User:Psanjaykumar/भगवान खिलाए कौन-कौन खाए

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भगवान खिलाए कौन-कौन खाए

एक प्रसिद्ध आदमी था। वह ईमानदारी और मेहनत के साथ समाजसेवा के कार्यो के लिए भी जाना जाता था। एक दिन बाजार में एक भिखारी ने उसके आगे हाथ पसारा। समाजसेवी को न जाने क्या सूझा कि उसने भिखारी से कहा, ‘चलो मेरे साथ, मैं तुम्हें भीख से कुछ ज्यादा देना चाहता हूं।’ भिखारी को लेकर वह अपने एक परिचित दुकानदार के पास पहुंचा। समाजसेवी ने कहा कि वह उसे कोई काम दे दे।

चूंकि लोग उस पर भरोसा करते थे, इसलिए दुकानदार ने भी उसके बताए आदमी, यानी भिखारी को कुछ सामान देकर आसपास के गांवों में बेचने का काम दे दिया। कुछ दिनों बाद जब वह समाजसेवी फिर से बाजार से गुजर रहा था, तो उसने भिखारी को हाथ फैलाए हुए पाया। जब उसने काम के बारे में पूछा, तो भिखारी ने बताया, ‘मैं सामान लेकर गांव-गांव घूमता था। एक बार मैंने देखा कि एक अंधा बाज पेड़ के नीचे बैठा हुआ था।


मुझे उत्सुकता हुई कि आख़िर वह अपने लिए खाने का इंतजाम कैसे करता होगा! तभी मैंने देखा कि एक और बाज चोंच में खाना भरकर लाया और उसे खिलाने लगा। तभी मेरे दिमाग़ में आया कि भगवान सबकी परवाह करता है। अगर उसने अंधे बाज के लिए भोजन का प्रबंध किया, तो वह मेरे लिए भी जरूर करेगा। इसलिए मैंने काम छोड़ दिया।’ उसका क़िस्सा सुनकर समाजसेवी ने इतना ही कहा, ‘यह सही है कि ऊपरवाला कमजोरों का भी ध्यान रखता है। लेकिन वह तुम्हें सबल बनने का विकल्प भी देता है। फिर तुमने अंधा बाज बनने की बजाय खाना खिलाने वाला पक्षी बनने का विकल्प क्यों नहीं चुना?’

सबक : भगवान की आड़ में अपनी अकर्मण्यता और आलस को सही न ठहराएं।