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कमल कि पत्ती कितनी अक्षि
कितनी सुन्दर कितनी मनहरणी।
-----कमरी
कूडे़दानों में कूडा़ डालते
हाथ डरता है
कूडा़ बीनना भी
बडी़ हिम्मत का काम है
पता नहीं किस पोलीथिन से
रावण जलने लगे
आतिशबाजी का नजारा देखने को
मिल जाए
अब कमरी बडी़ लकडी़ से
कूडा़ ढूंढ रही है
वो भी डरती है
जान के लिए ही तो
वह कूड़ा ढूंढ रही है
सलीका सीख गई
है कूड़ा ढूंढने का
हर आने जाने वाले पर
रखती है निगाह
वह जानती है
इस कूड़ेदान की पोलीथिन में ही
आतंक छिपा बैठा है
उसकी छोटी आँखें
और नन्हे हाथ ही
इस विस्व को
बचा सकते हैं
नगर निगम का कैमरा
उसी को देख रहा है
वो देश की है सच्ची रक्षक
जो भक्षकों से देश को
बचाने में जुटी है ।
--------प्रेम प्रकाश शर्मा
----( ५ अक्टूबर २००८)